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शाहीन बाग में प्रदर्शन के दौरान चार महीने के मासूम की मौत पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को स्वत: संज्ञान लेते हुए केन्द्र और दिल्ली सरकार को नोटिस भेजा है। इसके साथ ही, कोर्ट ने पूछा है कि क्या चार महीने का बच्चा प्रदर्शन के लिए गया था।
शाहीन बाग प्रदर्शन में चार माह के नवजात मोहम्मद जहान की मौत के बाद कोर्ट ने स्वत: संज्ञान 12 वर्षीय मुंबई की नेशनल ब्रेवरी अवॉर्ड विनर लड़की की तरफ से लिखी गई चिट्ठी के बाद लिया है। इसमें बच्चों और नवजात को प्रदर्शन और आंदोलनों के दौरान लेकर जाने पर रोक की मांग की गई थी। मोहम्मद जहान की मां उसे रोजाना प्रदर्शन स्थल पर लेकर जाती थी, लेकिन ठंड लगने के चलते उसकी 30 जनवरी को मौत हो गई ।
जब यह केस सोमवार को सुनवाई के लिए आया तो शाहीन बाग में प्रदर्शन कर रही कुछ महिलाओं के तरफ से पक्ष रखने के लिए आए वकीलों ने स्कूलों में उनके बच्चों के साथ हो रहे भेदभाव का मुद्दा उठाया। तीन माताओं की तरफ से पेश एक वकील ने कहा- “स्कूल से बच्चे घर आने के बाद रोते हैं क्योंकि उन्हें पाकिस्तानी और आतंकी कहा जाता है।” इस पर, न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा, “ हम इस समय एनआरसी, एनपीए, सीएए को लेकर या किसी बच्चे को पाकिस्तानी कहा गया, इस बाबत सुनवाई नहीं कर रहे हैं।”
महिलाओं की ओर से अनावश्यक जिरह किए जाने के बाद न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा, “हमें मदरहुड के लिए सम्मान है। हम किसी की आवाज नहीं दबा रहे हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में बेवजह की बहस नहीं करेंगे।” उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत के समक्ष यह विषय नहीं है कि किसी बच्चे को स्कूल में पाकिस्तानी कहा गया या कुछ और। नवजात बच्ची की मौत का मामला गंभीर है और वह केवल इसी मसले पर ध्यान केंद्रित रखेगी। इसके बाद न्यायालय ने केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी करके चार हफ्ते के भीतर जवाब देने को कहा है।
इससे पहले एक अन्य खंडपीठ ने शाहीन बाग में चल रहे धरना प्रदर्शन को खत्म करने को लेकर तत्काल कोई दिशा- निर्देश जारी करने से इनकार करते हुए केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार को सोमवार को नोटिस जारी किए। याचिकाकर्ताओं- वकील अमित साहनी और बीजेपी नेता नंद किशोर गर्ग के वकीलों ने न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की खंडपीठ को प्रदर्शन से जनता को होने वाली समस्याओं से अवगत कराया।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने प्रदर्शनकारियों को वहां से हटाने के लिए कोई आदेश या दिशा-निर्देश देने का कोर्ट से आग्रह किया, जिस पर खंडपीठ ने कहा कि वह फिलहाल कोई आदेश जारी नहीं कर रही। एक सप्ताह और इंतजार कर लें। कोर्ट ने कहा कि वह पहले प्रतिवादियों का पक्ष जानना चाहता है इसलिए उन्हें नोटिस जारी किया जाता है।
कोर्ट ने कहा- सार्वजनिक स्थल पर धरना उचित नहीं: इस बीच प्रदर्शनकारियों की ओर से एक वकील ने प्रदर्शन जारी रखने के अधिकार का जिक्र किया जिस पर न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर इस तरह धरना प्रदर्शन करना उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी को भी धरना प्रदर्शन करने के उसके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता फिर भी इस बात का ख्याल रखा जाना चाहिए कि धरना प्रदर्शन से आम जनता को किसी तरह की कोई समस्या ना हो। धरना प्रदर्शन एक निर्धारित क्षेत्र में ही किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 17 फरवरी की तारीख मुकर्रर की है तथा इस बीच केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी करके उन्हें उस दिन तक जवाब देने का निदेर्श दिया है। गौरतलब है कि शाहीन बाग में पिछले करीब दो महीने से नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ धरना प्रदर्शन जारी है जिसे लेकर नोएडा कालिंदी कुंज का मार्ग अवरुद्ध पड़ा है और यात्रियों को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

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