कविता में कवि को जनता के पक्ष में खड़ा रहना चाहिए। ये बातें प्रभा खेतान फाउंडेशन, मसि इंक और श्री सीमेंट की ओर से होने वाली मासिक कार्यक्रम आखर में कवि, साहित्यकार, कथाकार अजीत आजाद ने कही। कार्यक्रम के शुरुआत में ही मैथिली शोधार्थी डॉ निक्की प्रियदर्शी ने अजीत आजाद से पूछा कि आपने कविता की शुरुआत कब की इसपर उन्होंने कहा कि कविता की शुरुआत से पहले कथा लिखी मैंने। कथा की शुरुआत मैथिली साहित्य में “सगर राइत दीप जड़े” के आयोजन से की। आज वहा से जो साहित्य कर्म चला मेरा उससे आजतक 7 कविता संग्रह और कई कथा लिखी। अभी तक 1000 से ऊपर कविता लिखे है तो उसमें अच्छी कविता और खराब कविता को कैसे अलग करते है इस सवाल पर उन्होंने कहा कि यह तो सहचर्य है जो हमें अपने ऊपर की पीढ़ी से मिली है इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि शुरू में हमारा लिखा हुआ जीवकांत जी पढ़ते थे और कहते थे की बहुत अच्छा है फिर बहुत धीरे से उस लिखे हुए गजल को फाड़ देते थे उस समय बुरा लगता था लेकिन आज लग रहा है कि वो अच्छा किए। 1994 में मैने पहली कविता लिखी और आज 27 साल हो गए है लेखन कर्म में फिर जाकर आज इस मंच और बैठा हूं। कविता में वाद पर उन्होंने कहा कि कविता में वाद एक धारा में बंद जाता है जबकि कविता का काम जनता के पक्ष का होना है और सरकार का विरोध। यह आपको तय करना है कि आप किस तरफ खड़े है। आज दुनिया में कवि को मानवता के कारण यूक्रेन के साथ खड़ा होना चाहिए। हमलोग ने नंदीग्राम का विरोध किया था लेकिन माणिक सरकार का समर्थन। अगर आप किसी विचारधारा में होते तो ऐसा नहीं कर पाते। उन्होंने अपनी कविता संग्रह “गाम से बहरायत गाम” के संदर्भ के बारे में कहा कि यह हजार साल की यात्रा है। गाम अब शहर होते जा रहे है। हम सभी बस मजदूर मंडी बनकर रह गए है। हमारे पास गाम ही है तो गाम को ही लिखेंगे यही हमारी पूंजी है। वंचित लोगों की % सबसे ज्यादा गाम में ही पाया जाता है। इसीलिए उनकी ज्यादा से ज्यादा बात करेंगे तो गाम को लिखेंगे ही। मैंने मैथिली में मृत्यु पर मैथिली में कविता लिखी है। मैंने अपने आस्वाद के समय पर मृत्यु पर कविता लिखी है। हम 52 वर्ष की उम्र में “मृत्यु थिक विचार” लिखे। उसके बाद मैने अपनी पहचान अपने जड़ की ओर देखा। बड़े लेखक पहले बनाए हुए सांचा तोड़ते है। नागार्जुन इसका उदाहरण है। मैथिली साहित्य में मैथिली कविता नहीं है, मतलब कविता में मिथिला नहीं है। वैश्विक जगत पर मिथिला का विस्तार पर उन्होंने कहा कि मैथिली अब दरभंगा, मधुबनी से निकलकर पटना, दिल्ली और कई शहरों से होते हुए अमेरिका और कई देशों में जा पहुंचा है। इसके बाद उन्होंने अपनी एक कविता का पाठ किया। इस कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन मसि इंक की संस्थापक और निदेशक आराधना प्रधान ने किया। इस कार्यक्रम में कथाकार अशोक, पद्मश्री उषा किरण खान, उमेश मिश्रा, किशोर केशव, पंकज श्रीआदि लोग उपस्थित थे।

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