भागलपुर : पाक-ए-रमजान माह के दौरान खानकाह-ए-पीर शाह दमड़िया के सज्जादनशीं सैयद शाह फकरे आलम हसन ने फरमाया कि रमज़ान इस्लामी कैलेण्डर का नवां महीना होता है और मुस्लिम समुदाय में रमजान के महीने को बहुत ही पाक महीना माना जाता है.उन्होंने बताया कि रमजान के महीने को नेकियों यानि अच्छे कार्यों का महीना भी कहा जाता है,इसीलिए कई लोग इसे मौसम-ए-बहार भी बुलाते हैं. उन्होंने कहा कि इस रमजान को रमदान और इसे माह ए रमजान भी कहा जाता है. रमजान के महीने में रोजे (व्रत) रखने, रात में तरावीह की नमाज पढ़ना और कुरान तिलावत करना शामिल है.मुस्लिम समुदाय के लोग पूरे महीने रोजा रखते हैं और सूरज निकलने से लेकर डूबने तक कुछ नहीं खाते पीते हैं.इसके साथ में महीने भर इबादत करते हैं और अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं.सैयद हसन ने कहा कि रमजान के दौरान रोजा इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है.इस पूरे महीने में मुस्लिम संप्रदाय से जुड़े लोग अल्लाह की इबादत करते हैं.इस महीने में वे खुदा को खुश करने और उनकी कृपादृष्टि पाने के लिए नमाज़,रोजा के साथ,कुरान का पाठ और दान धर्म करते हैं.इस महीने की सबसे बड़ी खासियत यह है कि अल्लाह द्वारा दी हर नेमत के लिए उसका शुक्र अदा करना.इस दौरान उन्होंने रमजान के इस मुबारक माह से जुड़ी कुछ खास बातें भी बतलाई. रमजान महीने का इतिहास : सैयद हसन ने बताया कि इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक सन् 2 हिजरी में अल्लाह के हुक्म से मुसलमानों पर रोजे जरूरी किए गए.इसी महीने में शब-ए-कदर में अल्लाह ने पवित्र धर्मग्रंथ कुरान को नाजिल किया था.तब से मुस्लिम इस महीने में रोजे रखते आ रहे हैं.कई बार भूल से इंसान कुछ खा जाता है, उससे रोजा नहीं टूटता, लेकिन जैसे ही उसे याद आए तो सब कुछ बंद कर देना चाहिए. उन्होंने बताया कि इस माह में एक नेक काम करने के बदले 70 नेकी का सवाब मिलता है. तीन अशरों में बंटा है रमजान का महीना : सैयद हसन नेफरमाया कि इस्लाम के मुताबिक पूरे रमजान को तीन हिस्सों में बांटा गया है.अशरा को अरबी में 10 कहा जाता है. पहला अशरा (1-10 रोजा) रहमत का होता है.इसमें ज्यादा से ज्यादा दान कर गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए.दूसरा अशरा (11-20 रोजा) माफी का होता है। इसमें लोग खुदा की इबादत कर अपने गुनाहों से माफी पा सकते हैं.ऐसा कहा जाता है कि खुदा अपने बंदों को जल्द माफ कर देता है और तीसरा अशरा (21-30 रोजा) सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. इस आखिरी अशरे में सिर्फ खुदा को राजी करने के लिए इबादत करते हैं. जकात देना जरूरी : सैयद हसन ने बताया कि इस्लाम में रमजान के पाक महीने में हर हैसियतमंद मुसलमान पर जकात देना जरूरी बताया गया है.आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है, उसका 2.5 फीसदी हिस्सा किसी गरीब या जरूरतमंद को दिया जाता है, जिसे जकात कहते हैं.यानी अगर किसी मुसलमान के पास तमाम खर्च करने के बाद 100 रुपये बचते हैं तो उसमें से 2.5 रुपये किसी गरीब को देना जरूरी होता है. फितरा भी है जरूरी : सैयद हसन ने बताया कि इसके साथ ही फितरा वो रकम होती है, जो खाते-पीते, साधन संपन्न घरानों के लोग आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को देते हैं.ईद की नमाज से पहले इसका अदा करना जरूरी होता है.फितरे की रकम भी गरीबों,बेवाओं व यतीमों और सभी जरूरतमंदों को दी जाती है. खजूर से खोला जाता है रोजा : सैयद हसन बताया कि इफ्तार में रोजेदार खजूर से ही रोजा खोलते हैं.इससे रोजा खोलना सुन्नत माना जाता है.पैगंबर इस्लाम हजरत मुहम्मद को खजूर बेहद पसंद थे.वह खजूर से रोजा खोला करते थे.सुन्नत के कारण ही इफ्तार के समय लजीज पकवानों के साथ रोजा खोलने के लिए खजूर भी रखा जाता है.हदीस में सेहरी और इफ्तार में खजूर के इस्तेमाल पर जोर दिया गया है. फोटो :पीर शाह दमड़िया के सज्जादनशीं सैयद शाह फकरे आलम हसन

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