पटना. पटना का महावीर मंदिर रामनवमी को लेकर भव्य तरीके से सज चुका है. दो साल बाद हो रहे आयोजन में इस बार नैवेद्यम भी बाड़ी मात्रा में बनाई जा रही है. पिछले 30 वर्षों से इसकी प्रसिद्धि लगातार बढ़ती जा रही है. भक्तगण महावीर मंदिर में प्रसाद के रूप में नैवेद्यम चढ़ाने के बाद इसे मिठाई के रूप में घरों में भी रखते हैं. कहते हैं, सभी मिठाइयों का स्वाद एक तरफ और भगवान को भोग लगाने के बाद महावीर मंदिर के नैवेद्यम का स्वाद एक तरफ है. यहां के नैवेद्यम की खासियत है कि इसे दक्षिण भारत के कारीगर तैयार करते हैं जो कि तिरूपति बालाजी मंदिर में भी अपना हुनर दिखा चुके हैं. साउथ के कारीगरों के चेहरे पर इस बार उत्साह देखते हुए बन रहा है क्योंकि उन्हें दो साल बाद इतनी बड़ी मात्रा में नेवैद्यम तैयार करने का मौका मिला है. कोरोना के बाद जहां श्रद्धालुओं में भगवान के दर्शन को लेकर उत्साह देखने को मिल रहा है वहीं नैवेद्यम के कारीगर भी बता रहे हैं कि इसबार पुराने सारे रिकार्ड टूट जाएंगे क्योंकि श्रद्धालुओं की संख्या इसबार कई गुणा ज्यादा होने वाली है. पिछले दो सालों से कोरोना के कारण लगी पाबंदियों की वजह से भक्त रामनवमी पर मंदिर परिसर में नहीं आ सके थे.
देश भर में अपनी शुद्धता के साथ स्वाद के लिए मशहूर नैवेद्यम बनाने के लिए दूसरे राज्यों से सामग्री मंगाई जाती है. कर्नाटक से घी, दिल्ली से चना दाल, कश्मीर से केसर और केरल से किशमिश और काजू मंगाए जाते हैं. इसके स्वाद, शुद्धता और पवित्रता का हर व्यक्ति कायल है. पटना के महावीर मदिर में बनने वाला नैवेद्यम राजधानी के विभिन्न मदिरों में चढ़ाए जाने के साथ-साथ मुजफ्फरपुर गरीबनाथ मदिर में भी चढ़ाया जाता है. वहीं राजधानी के हनुमान मंदिर के अलावा पंचरूपी हनुमान मंदिर बेली रोड, बांस घाट काली मंदिर आदि शहर के प्रमुख मंदिरों में भी यहां से नैवेद्यम भेजा जाता है. मान्यता है कि भगवान को भोग लगाने के बाद ही श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते हैं. महावीर मंदिर का प्रसाद नैवेद्यम को खाद्य संरक्षा मानक संगठन एफएसएसएआई का सर्टिफिकेट मिला हुआ है. यह देश का 10वां मंदिर है जहां के प्रसाद को भोग का सर्टिफिकेट मिला हुआ है.
नैवेद्यम बनाने की खास विधि
सबसे पहले चना दाल को पीसकर शुद्ध बेसन बनाया जाता है. फिर इसे पानी से फेंटकर बुंदिया तैयार की जाती है. इसके बाद चीनी की चासनी में डालकर उसे मिलाया जाता है. मिलाने के क्रम में ही बुंदिया में काजू, किशमिश, इलाइची और केसर मिलाए जाते हैं. चासनी में बुंदिया का मिश्रण लगभग दो घंटे तक होता है. इसके बाद मिश्रण को लड्ड् बांधने वाले प्लेटफॉर्म पर रख दिया जाता है. यहां पर एक साथ 15 से 20 कारीगर खड़े होकर लड्डू बांधते हैं. यहां बैठकर लड्डू बनाने की परंपरा नहीं है. लड्डू बांधने के बाद उसे 250 ग्राम, 500 ग्राम और एक किलो के पैकेट में रखा जाता है. फिर उसे महावीर मंदर भेज दिया जाता है. महावीर मंदिर से ही नैवेद्यम कई अन्य मंदिरों को भी भेजा जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा खपत महावीर मदिर में ही होती है. आम दिनों में मंगलवार को तकरीबन 6-7 हजार नैवेद्य रोज बनता है.
20-25 हजार किलो नैवेद्य बनाने का टारगेट
महावीर मंदिर प्रसाद प्रबंधन समिति के मैनेजर आर. शेषार्द्री ने बताया कि रामनवमी को लेकर इस बार 20-25 हजार का टारगेट रखा गया है. बीते वर्षों में रामनवमी पर नैवेद्य की बिक्री की बात करें तो 2013 में 18 हजार किलो नैवेद्य बनाया गया था वहीं 2014 में 22 हजार किलो तो 2015 में 17 हजार किलो, 2016 में 18 हजार किलो, 2017, 2018 और 2019 में भी 18 हजार किलो बनाया गया था और फिर कोरोना के कारण 2020 और 2021 में मंदिर बंद था, जिस कारण ही इस बार भारी संख्या में लोगों के मंदिर में आने संभावना को देखते हुए इस बार 20-25 हजार किलो नैवेद्य बनाने का टारगेट रखा गया है.
तिरुपति से आए कारीगरों का कमाल
नैवेद्य की पहचान मूल रूप से दक्षिण भारत के तिरुपति बालाजी मंदिर से जुड़ी हुई है. वर्ष 1992 के 22 अक्टूबर से पटना में महावीर को भोग लगाने के लिए तिरुपति से आए कारीगरों द्वारा तैयार किया जाता रहा है. महावीर मंदिर और नैवेद्यम का साथ अब तीस सालों का हो गया है. यहां 20 सालों से कारीगर काम कर रहे हैं. 70 पर्सेंट कारीगर साउथ इंडिया से है जो प्रसाद तैयार करते हैं और बाकी 30 पर्सेंट पैकेजिंग का काम करने वाले बिहार से हैं. 70 पर्सेंट कारीगरों में से ज्यादातर तो ऐसे हैं जिन्हें हिंदी तक बोलना नहीं आता मगर उनके घरों में पुश्तैनी तौर पर यह काम सालों से किया जा रहा है.
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