पटना. बिहार के बोचहां विधानसभा उपचुनाव ( Bochahan Vidhan Sabha by-election) में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के अमर पासवान ने बीजेपी की बेबी कुमारी को भारी मतों के अंतर से हरा दिया है. वीआईपी की गीता कुमारी ने भी 20 हजार से अधिक वोट प्राप्त कर भाजपा का खेल खराब कर दिया. इसी के साथ ही बिहार की सियासत में नये सियासी ‘खेल’ की चर्चा भी होने लगी है. दरअसल, बोचहां विधान सभा सीट पर राजद की जीत के साथ ही पाार्टी ने स्पष्ट तौर पर यह मान लिया कि कि वर्तमान में जिस रणनीति पर राजद चल रहा है यह उसकी जीत है.
राजद के सांसद मनोज झा ने न्यूज 18 से बात करते हुए कहा कि बिहाj की सियासत के ये नये संकेत जमीन से पहले से मिल रहे थे. लालू जी के निर्देश पर बहुत व्यापक वैचारिक राजनीतिक तब्दीलियां की गईं. इसी पर आगे बढ़ते हुए नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने एमएलसी चुनाव में सफलता पाई और अब बोचहां सीट पर भी राजद ने जीत दर्ज की. मनोज झा ने दावा किया कि सामाजिक न्याय और आर्थिक न्याय आरजेडी के रथ के दो पहिए हैं और राजद अब सर्वसमाज की पार्टी है.
बिहार की राजनीति के जानकार मानते हैं कि सूबे की सियासत में 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए की प्रचंड जीत और राजद की करारी हार के बाद से ही हलचल है. इसके बाद राजद ने अपनी राजनीतिक रणनीति में कुछ बदलाव किए और इसकी कुछ तस्वीर वर्ष 2020 विधान सभा चुनाव में भी दिखी जब राजद ने सवर्णों की राजद में भागीदारी बढ़ाई. राजद गठबंधन और एनडीए गठबंधन के बीच कुल वोटों के लिहाज से जीत-हार का अंतर महज 12000 वोटों का था.
दरअसल, वर्ष 2020 के चुनावी नतीजों पर गौर करें तो एनडीए और महागठबंधन के बीच सिर्फ 12,768 वोटों का अंतर था. 1,57,01,226 मतदाताओं ने एनडीए को तो महागठबंधन को 1,56,88,458 वोट दिया था. लेकिन, दोनों गठबंधनों के बीच 15 सीटों का अंतर रहा और एनडीए 125 सीटें लेकर सत्ता में वापसी कर गई. वहीं, 110 सीटें हासिल कर राजद नीत महागठबंधन सिर्फ 12 सीटों से पिछड़ गया. ऐसे में राजद के रणनीतिकारों ने माना कि कुछ ही कमी रह गई जिसे पाटना जरूरी है.
राजनीति के जानकार बताते हैं कि इस चुनाव के दौरान भी अक्सर तेजस्वी ए टू जेड की राजनीति की बात करते रहे और इस नीति को पार्टी की नीतियों में जमीनी स्तर पर भी लागू किया. परिणाम यह रहा कि बिहार विधान सभा के पहले चरण में एनडीए का सूपड़ा साफ करने में तेजस्वी के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने सफलता प्राप्त की. हालांकि, बाद में एनडीए ने भी अपनी रणनीति बदली और दूसरे व तीसरे चरण में मामूली बढ़त प्राप्त कर महागठबंधन को 12 हजार मतों से हरा दिया.
मामूली अंतर से राजद पिछड़ तो जरूर गया, लेकिन यहीं से उसे सबक भी मिला और नई राह भी दिखी. राजद ने अपनी रणनीति में थोड़ा और चेंज किया और उसको 2022 के एमएलसी चुनाव में इंप्लीमेंट भी किया. इसका परिणाम रहा कि राजद को अपेक्षा से बहुत अधिक सफलता मिली. 18 सीटों पर एनडीए काबिज था, लेकिन इस चुनाव में उसे महज 13 सीटों पर सिमट जाना पड़ा. राजद ने 6 सीटों पर शानदार जीत हासिल की और इसी के साथ बिहार में नए समीकरण की सूत्रपात भी होता दिखा.
बता दें कि आरजेडी ने अपनी तीन दशक की राजनीति में पहली बार भूमिहारों (सवर्ण) को साथ लाने की कोशिश की. एमएलसी चुनाव में तेजस्वी यादव बिहार में एक नया राजनीतिक समीकरण ‘भूमाय’ (भूमिहार, यादव और मुसलमान) बनाया. एमएलसी चुनाव में 24 में राजद के 6 सदस्य निर्वाचित हुए जिनमें 3 भूमिहार जाति से हैं.
बोचहां विधान सभा उपचुनाव में राजद ने यहां सवर्णों को साधने के लिए तमाम रणनीति बनाई और उसमें वह सफल रहे. कैंडिडेट तो दलित वर्ग के अमर पासवान बने लेकिन, राजद के नेता व कार्यकर्ता सवर्णों को साधने में मेहनत की जिसका नतीजा बोचहां उपचुनाव में अमर पासवान की जीत के रूप में सामने आया.
दरअसल, बदलते वक्त के साथ राजद ने भी यह मान लिया है कि अब राजनीति भी बदलनी होगी. पार्टी के रणनीतिकारों ने माना कि जातिवादी राजनीति तो बिहार में हमेशा रहेगी लेकिन, उसका स्वरूप बदल जाएगा. बोचहां उपचुनाव में जिस तरीके से अमर पासवान ने जीत दर्ज की उसमें काफी हद तक तेजस्वी की रणनीति का भी योगदान है. रणनीति सवर्णों को साथ लाने की, सर्व समाज की अवधारणा की, ए टू जेड पॉलिटिक्स की.
अब माना जा रहा है कि जहां नीतीश कुमार रिटायरमेंट (नीतीश कुमार की अंतिम राजनीतिक पारी मानी जा रही है) की ओर हैं, वहीं तेजस्वी यादव अपने उभरते दौर में हैं. बिहार में नेतृत्व की विकल्पहीनता की स्थिति है भाजपा व जदयू के पास कोई चेहरा दिखता नहीं है. ऐसे में तेजस्वी यादव के सामने भरपूर अवसर हैं.
दूसरी ओर राजनीतिक जानकार यह भी मानते हैं कि भाजपा व जदयू में सवर्णों की तथाकथित उपेक्षा को राजद ने अपने फेवर में कैश करना शुरू कर दिया है. ऐसे में तेजस्वी यादव सर्वसमाज की सियासत के नायक के तौर पर उभरते दिखते हैं. ऐसे भी आरजेडी, कांग्रेस, वामदलों के साथ एआईएमआईएम के 5 सदस्य साथ आ जाएं और कुछ जदयू-भाजपा के नेताओं का मन डोल गया तो हो सकता है कि आने वाले समय में बिहार की सत्ता सियासत के गणित में कोई बड़ा ‘खेला’ न कर दे.
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