इंसान से बड़े बड़े और बेशुमार गुनाह हुए हों लेकिन अल्लाह की रहमत और मगफिरत से उदास नही होना चाहिए और दरबार में तौबा स्वीकार करने की आज्ञा तब तक खुली रहती है। जब तक नौकर अपनी मृत्यु के समय गरारे करने की स्थिति में नहीं पहुँच जाता, उस समय से पहले जब भी बंदा अल्लाह से अपने गुनाहों से सच्चा तौबा कर लेगा तो अल्लाह अपने फजल व रहमत से इसकी तौबा कुबूल करते हुए उसके सारे गुनाह माफ फरमा देगा। देश के मशहुर इस्लामिक विद्वान इंडियन काउंसिल ऑफ फतवा एंड रिसर्च ट्रस्ट एवं जामिया फातिमा लिल्बनात, मुजफ्फरपुर के चेयरमैन मौलाना बदीउज्जमा नदवी क़ासमी ने अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा, इमाम अल-ग़ज़ाली रहमतुल्ला अलैहे का यह शब्दों को देखें: “जो व्यक्ति गुनाहों में डूबी हुआ हो, जब उसके दिल तौबा का ख्याल पैदा होता है, तो शैतान उससे कहता है कि तुम्हारा तौबा कैसे कुबूल हो सकता है? वह यह कह कर उसे अल्लाह की रहमत से उदास कर देता है। ऐसी सूरत में जरूरी है कि उदासी को दूर करके उम्मीद रखें और इस बात को याद करे कि अल्लाह तमाम गुनाहों को माफ करने वाला है। बेशक अल्लाह करीम है,जो बंदे की तौबा कुबूल करता है। रोजा ऐसी इबादत है जो गुनाहों को मिटा देती है। अल्लाह हमें गुनाहों से सच्ची तौबा करने और अपनी रहमत एवं मगफिरत से हकीकी उम्मीद रखने की तौफीक अता फरमायें आमीन। इसलिए हर मुसलमान को चाहिए किसी भी स्थिति में अल्लाह की रहमत से मायूस न हो। दुखों और कष्टों के लिए उससे प्रार्थना करनी चाहिए क्योंकि अललाह ही वास्तव में कठिनाइयों को दूर करने वाला है। अल्लाह हमें अपनी रहमत से मायूस और नाउम्मीद होने से सुरक्षित फरमायें।(आमीन)।

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