मधुबनी. जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर कमला नदी के किनारे स्थित अंधराठाढ़ी प्रखंड का पस्टन नवटोली गांव ऐतिहासिक संपदा से भरपूर है. पुरातात्विक विशेषज्ञों का कहना है कि अंधराठाढ़ी प्रखंड में न सिर्फ पस्टन नवटोली गांव बल्कि इसके आसपास के कई क्षेत्रों में पाल वंश के राजाओं ने कई बौद्ध स्तूप और बौद्ध विहारों का निर्माण कराया था. बताया जाता है कि स्थानीय ग्रामीणों द्वारा इस इलाके में खुदाई करने के दौरान कई बार ऐतिहासिक अवशेष मिले.
ऐसी सूचनाओं पर पुरातत्व विभाग द्वारा भी इस इलाके में खुदाई के काम करवाए गए, जिससे पस्टन नवटोली गांव में मध्यकालीन बौद्ध स्तूप होने की आस थी. स्थानीय ग्रामीण और नवटोली मिडिल स्कूल के शिक्षक परमेश्वर भंडारी का कहना है कि ‘करीब 7-8 साल पहले इस इलाके में खुदाई का काम शुरू हुआ था, जिसमें ऐतिहासिक साक्ष्य मिलने की बात सामने आई थी, लेकिन कुछ महीने बाद ही किसी कारणवश खुदाई का काम रोक दिया गया.’
ऐतिहासिक विरासत की देख-रेख में लापरवाही
नवटोली गांव निवासी हरिओम शरण का कहना है कि खुदाई का काम किस वजह से रोका गया, इसकी जानकारी न तो ग्रामीणों को है और न ही स्थानीय प्रशासन को. लेकिन, ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण स्थल होने के बावजूद टीलेनुमा आकार वाले इस स्थल की देख-रेख में भारी लापरवाही बरती जा रही है. प्रशासन की ओर से कोई बंदिश नहीं होने और सार्वजनिक स्थल होने के चलते आसपास के लोग यहां से न सिर्फ मिट्टी काटकर ले जाते हैं, बल्कि ऐतिहासिक साक्ष्य वाली ईंटें भी खोदकर ले जाते हैं.
उसी जगह नल जल योजना का बोर करा दिया
इतना ही नहीं स्थानीय प्रशासन की लापरवाही का आलम ये है कि तथाकथित बौद्ध स्तूप वाली जमीन में ही नल जल योजना के तहत बोरिंग कराकर जलमीनार का भी निर्माण करा दिया गया. ऐसे में स्थानीय ग्रामीण बेहद निराश हैं.लोगों का कहना है कि जिस जमीन के नीचे कई ऐतिहासिक साक्ष्य दफन हैं, उसे सहेजने और संवारने की बजाय बर्बादी के कगार पर पहुंचा दिया गया है.
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