पटना. बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव के समय महागठबंधन में शामिल कांग्रेस (Congress) को उम्मीद से ज्यादा सीटों पर कामयाबी मिली थी. कांग्रेस ने 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और 19 सीटों पर सफलता मिली. राजनीतिक जानकारों की मानें तो कांग्रेस की यह सफलता उसे महागठबंधन में शामिल होने के कारण मिली. मगर इस सफलता से उत्साहित कांग्रेस खुद को मजबूत करने की जगह आपसी भितरघात में उलझते चला गया. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मदन मोहन झा की कुर्सी को हर दिन चुनौती मिलती रही. परिणाम हुआ कि पिछले हफ्ते उन्हें पद छोड़ना पड़ा और जैसा कि तय था, अध्यक्ष पद के लिए दिल्ली दौड़ शुरू हो गई है. सूत्रों की मानें तो बिहार में कांग्रेस को फिर से जिंदा करने की जिम्मेदारी प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) के मार्गदर्शन में कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) को दी जाने वाली है.
बता दें कि इस महीने अचानक बिहार की राजनीति दिलचस्प हो गई. सूबे में सम्पन्न हुए एमएलसी का चुनाव परिणाम बहुत हद तक स्थापित मान्यताओं को तोड़ने का संकेत दिया तो दूसरी तरफ बोचहां विधानसभा उपचुनाव परिणाम ने उस पर मुहर लगा दी. बोचहां में आरजेडी को सफलता मिली और सत्ता में शामिल बीजेपी उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा. पूर्व में प्रचलित तमाम दावों की हवा निकालते हुए बोचहां चुनाव परिणाम ने एक नए समीकरण की ओर संकेत की पुष्टि कर दी है.

सोनिया गांधी की सहमति के बाद प्रशांत किशोर कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. ( प्रतीकात्मक फोटो)
बिहार में जाति के जंजाल को साधने में जुटी कांग्रेस
अब तक की चुनावी परम्परा की बात करें तो सवर्णों का एकमुश्त वोट एनडीए को मिलता रहा है. मंडल-कमंडल की दौर से ही पूरे प्रदेश में सवर्ण, जो कभी कांग्रेस के वोटर हुआ करते थे, बीजेपी के साथ हो लिए. बिहार में पिछले 30 वर्षों से यही चला आ रहा है. प्रदेश में राजनीति का दूसरा मजबूत धड़ा आरजेडी के साथ पिछड़े और मुस्लिम खड़े रहे हैं. मगर फिलवक्त के संकेत इस बात की ओर है कि वोटिंग का यह परम्परागत पैटर्न टूट रहा है.
कांग्रेस क्यों कन्हैया कुमार पर दांव लगा रही है?
कांग्रेस इस बात से उत्साहित होकर पार्टी से विमुख हुए वोटरों को अपनी तरफ मोड़ने में लग गई है, ऐसा लगता है. एमएलसी चुनाव परिणाम हो या बोचहां का उपचुनाव, सवर्णों ने बहुत हद तक अपनी परम्परागत रूचि से हटकर आरजेडी को वोट किया है.

बिहार कांग्रेस अध्यक्ष पद की रेस में कन्हैया कुमार का भी नाम.
सवर्णों का बीजेपी से कथित मोहभंग के मायने
मगर, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सवर्णों का बीजेपी से कथित मोहभंग होने के बाद भी आरजेडी उसका पहला प्यार नहीं है, हां तात्कालिक रूप से भटकाव जरूर हुआ है. सवर्णों का एक बड़ा हिस्सा जो अपनी संख्याबल से ज्यादा पूरी चुनावी गणित को प्रभावित करता है, वो भूमिहार है. हाल के चुनाव परिणाम से भूमिहारों के बीच बीजेपी के लिए नाराजगी है और वो इसलिए आरजेडी को वोट कर रहे हैं.
जातीय राजनीति का बिहार में क्या होगा भविष्य
ऐसे में प्रचारित किया जा रहा है कि बिहार में इस राजनीतिक बदलाव का कांग्रेस लाभ लेना चाहती है. इस लाभकारी दृष्टिकोण को मजबूत करने के लिहाज से ही युवा नेता कन्हैया कुमार को प्रदेश की बागडोर देना चाहती है. जातीय राजनीति आज की सच्चाई है और सच्चाई की इस चासनी में इस बार कन्हैया को सेट करने की तैयारी कांग्रेस ने कर लिया है. भाषण कला में निपुण कन्हैया जाति से भूमिहार हैं और वामपंथ का चोला उतार कर अभी-अभी कांग्रेस का दामन थामा है. जाहिर है, नए होने के नाते प्रदेश कांग्रेस की गुटबाजी से वो थोड़ा मुक्त होंगे.

बोचहां में आरजेडी को सफलता मिली और सत्ता में शामिल बीजेपी उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा.
कांग्रेस ने क्या प्रतिक्रिया दी है
कन्हैया के सवाल पर प्रदेश कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता असित नाथ तिवारी कहते हैं कि बदलते राजनीतिक-जातीय समीकरण में यह निर्णय पार्टी के लिए बेहतर माना जा सकता है. बिहार के सवर्ण बदलाव चाहते हैं और इसके लिए वो अपनी पुरानी राजनीतिक निष्ठा की ओर शिफ्ट होना चाहते हैं.’
क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार
मगर, इसके उलट बिहार की राजनीति को करीब से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुनील पांडेय इस संभावित नेतृत्व परिवर्तन को लेकर आशान्वित नहीं हैं. पांडेय कहते हैं, ‘अध्यक्ष बदल देने से कुछ नहीं होगा, ग्रास रूट पर कांग्रेस को काम करने की जरूरत है. इस बात को उत्तरप्रदेश के सन्दर्भ में समझना आसान होगा. प्रियंका गांधी खुद फ्रंट से कमान संभाली थी, नए नारे गढ़े गए मगर परिणाम क्या रहा, सभी जानते हैं. मेरी जानकारी में कन्हैया कुमार, प्रशांत किशोर की पसंद हैं, मगर यह पसंद बिहार की जनता को कितना लुभा पाएगा, इसमें सौ फीसदी संदेह है.’

बिहार में 2020 में नीतीश सरकार बनने के बाद से ही नए राजनीतिक समीकरण बनने और बिगड़ने की बात पटना के राजनीतिक गलियारे में तैरती रहती है.
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गौरतलब है कि बिहार में 2020 में नीतीश सरकार बनने के बाद से ही नए राजनीतिक समीकरण बनने और बिगड़ने की बात पटना के राजनीतिक गलियारे में तैरती रहती है. ऐसे में कांग्रेस का यह नया दांव बीजेपी के लिए चिंता का कारण बन सकता है. अगर बिहार में भूमिहार-ब्राह्मण का झुकाव कांग्रेस के प्रति होती है तो इसका सीधा नुकसान बीजेपी को और बड़ा फायदा आरजेडी को हो सकता है. हालांकि, बीजेपी नेताओं के द्वारा लगातार बयानबाजी होती रहती है कि भूमिहार समेत सभी सवर्ण बीजेपी के साथ ही रहेंगे. लेकिन, हाल के चुनाव परिणामों से प्रतीत हो रहा है कि बीजेपी नेताओं का यह कहना कि ‘ये जाएंगे तो जाएंगे कहां?’ पर करारा जवाब मिला है.
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Tags: Bihar Congress, Kanhaiya kumar, Prashant Kishor, Prashant Kishore, Rahul gandhi, Sonia Gandhi
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