भागलपुर : देश में जहां आपसी मिल्लत को प्रभावित करने लिए कुछ असामाजिक तत्व प्रबल हैं,वहीं बिहार स्थित भागलपुर के एक चर्चित पत्रकार पिछले 17 सालों से रोजा रखकर शांति-सदभाव का दूत बनकर वे आपसी मिल्लत की मिसाल कायम कर रहे हैं.माह-ए-रमजान को कुरान पाक का महीना माना जाता है. मुस्लिम समुदाय के लोग पूरे महीने भर रोजा रखते हैं लेकिन,कई हिंदू भी बड़े प्यार से ठीक उसी तरह रोजा रखते आ रहे हैं,जैसे कई मुस्लिम समुदाय के लोग नवरात्र के दिनों में नवरात्रि और छठ महापर्व को न केवल तबज्जो देते हैं बल्कि उसके सारे नियम-कायदे बड़ी निष्ठा के साथ मनाते रहे हैं. आज हम ऐसे ही एक रोजेदार के बारे में बात कर रहे हैं. बिहार स्थित बांका जिले के रहने वाले आन्दोलनकारी सह वरिष्ठ पत्रकार गौतम सुमन गर्जना वर्तमान में भागलपुर में रहते हैं, जो पिछले 17 वर्षों से रोजा रखते आ रहे हैं.हिंदु धर्म के प्रति आस्था रखने वाले इस भक्ति की अलविदा शुक्रवार को करना वे कभी नहीं भूलते हैं. हलांकि कोशिश करते हैं किसी भी शुक्रवार को कभी न छोड़ें.वे अक्सर कहते हैं कि जहां आस्था है, वहीं भगवान है और जहां विश्वास है, वहीं संपूर्ण ब्रह्मांड; चाहे कोई भी धर्म हो लेकिन खुदा की इबादत बस यही सीखाती है कि मानवता और इंसानियत में विश्वास रखो.इसके साथ ही हर इंसान की कदर करना सीखो.रमजान में रोजे को अरबी में सोम कहते हैं, जिसका मतलब है रुकना.इस शख्स की खासियत ये है कि नवरात्रि,गुरु पर्व,क्रिसमस से लेकर ये माहे रमजान में तीसों दिन रोजा तक रखते हैं. रोजे में रहने का इनका दिनचर्या कुछ अलग है.माहे रमजान में गौतम मुस्लिम भाई की तरह सुबह उठकर सेहरी खाते हैं और दिन में अपने हिस्से का भोजन ये किसी गरीब को खिलाकर शाम को खुद इफ्तारी करते है,इस दौरान दिन भर वे हिंदी में रचित कुरान-ए-मजीद व रामायण पढ़ते हैं.तत्पश्चात ईद का चांद दीदार करते ही वे अपने लिए नहीं बल्कि 5 गरीब-गुरबों के लिये नए कपड़े खरीदकर न के वल ईद के दिन उसे देते हैं बल्कि उनके साथ ही भोजन कर उनकी हंसी-खुशी को अपना ईदी मानते हैं और इस सिलसिले को वे विगत 17 सालों से कायम रखे हुए हैं. हिंदु-मुस्लिम एकता को एक परिवार और आपसी मिल्लत की मिसाल मानने वाले इस शख्स को जितनी हिंदू पर्व- त्योहारों में आस्था है, उतनी ही श्रद्धा रमजान,गुरु पर्व और मैरी क्रिसमस में भी है.गौतम सुमन गर्जना हिन्दू – मुसलिम एकता की मिसाल पेश कर रहे हैं. इनकी खासियत यह है कि आम दिनों में भी सदैव ये सामाजिक सोच और उनके हितार्थ के ताने-बाने में खुद को व्यस्त रखते हैं. दर्जन भर लोगों के सहयोग से श्री गर्जना ने अबतक 28 कन्याओं के हाथ पीले कराए और 32 जरुरतमंदों को रक्तदान कर चुके गौतम सुमन गर्जना रोजा रखने के संदर्भ में बताते हैं कि रोज़ा करने के लिए किसी ने इन्हें कहा या दबाव नहीं बनाया बल्कि एक बार अचानक लगा कि माहे-रमजान के दिनों में रोजा रखा जाय.उन्होंने बताया कि वे सदैव अपने मन की सुनते और करते आए हैं,इसलिए उन्होंने रोजा रख ली.30 दिनों बाद उन्होंने यह महसूस किया कि वे बुरी आदतों से तौबा कर सुकूं महसूस कर रहे हैं,बस इसके बाद से उन्होंने न केवल माहे रमजान में रोजा रखनी आरंभ कर दी बल्कि गुरु पर्व,मैरी क्रिसमस डे और नवरात्र के नवरात्रि को भी अपने जीवन का हिस्सा मान कर खुद को पवित्र करने में लग चुका हूं. वे कहते हैं कि पवित्र होकर ही पवित्रता की प्रचार हो सकती है.वे कहते हैं कि मन और जूवां को पाक-साफ करके हम ऊपरवाले को न केवल पा सकते हैं बल्कि इससे हम आसानी से ऊपरवाले की दया और कृपा के पात्र बन सकते हैं. श्री गर्जना ने कहा कि तमाम बुराइयों से परहेज करना ही रोजा का मूल मंत्र है.रोजे में दिन भर भूखा व प्यासा ही रहा जाता है.भूख-प्यास की अनुभव व पीड़ा हमें इंसानियत का सबक सिखाते हुए जरुरतमंदों के करीब ले जाकर उनका मददगार बनाता है.उन्होंने बताया कि रोजा झूठ,हिंसा बुराई, रिश्वत तथा अन्य तमाम गलत कामों से बचने की प्रेरणा देता है.चाहे कोई भी धर्म हो लेकिन, ऊपरवाले की इबादत बस यही सीखाती है कि मानवता और इंसानियत को जिन्दा रख सदैव उनमें विश्वास रखो. फोटो : शांति-सद्भाव और आपसी मिल्लत की मिसाल कायम रखने वाले गौतम सुमन गर्जना