अशरफ अली बस्तवी ) अगर आप अबुल फज़ल जामिया नगर में रहते हैं , कभी अपने दोस्तों और फैमली के साथ ‘मुग़ल कुज़ीन ‘ में डिनर करने पहुंचे हों या कालिंदी कुञ्ज रोड पर ठोकर नंबर तीन से गुज़रते हुए आप की नज़र इस ठेले पर ज़रूर पड़ी होगी। इनका नाम मुहम्मद ज़फर है पिछले 5 साल से ज़फर इसी जगह पर अपना ठेला लगाते हैं , लॉक डाउन से पहले तक उनकी पत्नी भी जाड़ा , धुप , गर्मी , बरसात में साथ होती थीं , लेकिन इन दिनों बीमार हैं , ज़फर का परिवार ठोकर नंबर 4 पर 4 हज़ार रूपये महीना किराये पर एक कमरे में रहता है। उनके तीन बेटियां और एक बेटा है सभी स्कूल जाते हैं । उनके मुताबिक लॉक डाउन से पहले तक ज़िन्दगी सख्त ज़रूर थी लेकिन गुज़र रही थी अब लॉक डाउन के बाद से तो जीना मुहाल हो गया है , घर में बीवी बीमार हैं , तीन माह से मकान किराया अदा नहीं हो सका है जिस की वजह से मालिक मकान झिड़की जिसे धमकी भी कह सकते हैं ने बेहद परेशान कर दिया हैं।
लॉक डाउन से पहले तक इसी ठेले से रोज़ाना500 तक कमा लेते थे ज़फर ने एशिया टाइम्स को बताया लॉक डाउन से पहले तक इसी ठेले से रोज़ाना 500 तक कमा लेते थे , ज़िन्दगी चल रही थी लेकिन अब मुश्किल से 200 से ज़्यादा कमाई नहीं हो पाती ,जिसमे 4 हज़ार घर का किराया देदें तो फिर खाएं क्या , बीवी का इलाज कैसे हो समझ में नहीं आ रहा है ज़फर कहते हैं मुकम्मल लॉक डाउन में तीन चार बार राशन और कुछ पैसे मिले थे जिस से थोड़ी राहत थी लेकिन अब जब से लॉक डाउन खुला हैं , कहीं से मदद भी नहीं मिल पाई है और काम पूरी तरह ख़त्म हो गया है। इस वक़्त उनका सबसे बड़ा मसला बीवी का इलाज और घर का तीन महीना का भाड़ा है जिसे लेकर वो बहुत परेशान दिखे , कहने लगे अभी तो यही मुसीबत सबसे बड़ी है। ज़फर तो एक मिसाल हैं ऐसे न जाने कितने परिवार इस कश्मकश में जी रहे हैं , जिनको मदद दरकार है लेकिन बिना किसी सर्वे और प्लानिंग के हंगामी मदद का एक नकारात्मक पहलू यह सामने आ रहा है कि अब ऐसे ज़रुरत मंदों तक हम खुद पहुंच नहीं पा रहे हैं , हमें अपनी गली में लाउडस्पीकर पर सदा लगा कर मांगता वो भिखारी ज़्यादा दया का पात्र लगता है ,लेकिन मोहम्मद ज़फर जैसे गैरतमंद नौजवान जिन्हों ने मेहनत को अपनाया है नज़र नहीं आते , मेहनत काश हाथों को मज़बूत करना हमारा फ़र्ज़ है। क्या वजह है ‘मुग़ल कुज़ीन’ में डिनर के बादवेटर्स को टिप्स देने वाले किसी शख्स की नज़रमोहम्मद ज़फर के ठेले पर कभी नहीं पड़ी आखिर क्या वजह है ‘मुग़ल कुज़ीन’ में डिनर के बाद वेटर्स को टिप्स देने वाले किसी शख्स की नज़र मोहम्मद ज़फर के ठेले पर कभी नहीं पड़ी ,कभी तो कोई उसका हाल मालूम करता , जबकि वेटर तनख्वाह भी पाता है , हालाँकि वह भी हक़दार है उसे भी मिलना चाहिए , आप के स्वागत में फाइव स्टार होटलों पर तैनात वो शख्स भी तनख्वाह पाता है जिसे आप गाड़ी का गेट खोलने पर खुश होकर रुपए झट से थमा देते हैं। सलाम ही नहीं करें बल्कि कलाम भी करें औरहाल जानने की कोशिश करें लेकिन जब आप मोहल्ले के ठेले से फल या सब्ज़ी खरीदते हैं तो उस से उलझने में उसे डांटने में आपको इत्मीनान होता है। दोस्तों यह ‘कोरोना काल’ आगे हालात और मुश्किल हैं ,सरकारें हैं लेकिन अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में नाकाम हैं ऐसा करना उनकी सियासी ज़रुरत है ,लेकिन हम जिस मोहल्ले में रहते हैं अपने आसपास नज़र रखें , एक दुसरे से मिलते हुए सिर्फ सलाम ही नहीं करें बल्कि कलाम भी करें और हाल जानने की कोशिश करें , ऐसे लोगों की मदद करें अगर कर सकते हों। ज़फर के नंबर पर कॉल करके उनको मदद कर सकते हैं, Mobile : 9354443138
