इस्लामिक कलेन्डर में रबि-अव्वल महीने का बड़ा महत्व है। चूँकि इसी पवित्र महीने में इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मोहम्मद साहब का जन्म हुआ था । साढ़े चौदह सौ वर्ष पूर्व जब हज़रत मोहम्मद ने पवित्र मक्का शहर में आंखें खोलीं तो दुनिया का नज़ारा ही कुछ और था । पूरा विश्व अंध्कार में डुबा हुआ था। समाजिक बुराईया बढ़ी हुईं थीं महिलायें मनोरंजन का साधन बनी हुई थीं, बच्चियों का पैदा होना अभिशाप माना जाता था और उन्हें जिंदा दफन कर दिया जाता था । शराबनोशी आम थी, झगड़ा फसाद ऐसा के सैंकड़ों वर्ष एक कबिले के लोग दूसरे कबिले के खुन के प्यासे थे । एक ईश्वर की प्रार्थना के बदले सैंकड़ों ईश्वर थे। पूरी दुनिया तबाही के दहाने पर थी । रबि-उल अव्वल का महीना सारी मानवता के लिए करूणा, दया और मुश्क बारी का महीना है। क्योंकि इसी पवित्र महीना में मुहसिन-ए-इन्सानियत हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का जन्म मुबारक हुआ । आज से साढ़े चौदह वर्ष पूर्व जब आपकी विलादत-बासआदत हुई तो उस समय पूरी मानवता अज्ञानता एवं गुमराही के अंधेरे में थी। हर तरफ़ फ़साद, उपद्रव और अशान्ति का राज था । दुनिया से शान्ति का वातावरण, नेकी एवं कल्याण उठ चुका था । इंसान हैवान बन चुका था । वह समाज के दबे कुचले और निःशक्त मानव के साथ ऐसा व्यवहार करता जो पशु भी पशु के साथ नहीं करते, औरतों का कोई सम्मान नहीं था वह मात्र एक विलासिता का पात्र समझी जाती थी । माँ-बाप उसके जन्म पर जिवित क़ब्र में डाल देते थे । अच्छे-बूरे की कोई पहचान नहीं थी । सूद, रिश्वत, चोरी, डकैती और जुआबाज़ी आम थी । मानो पूरी दुनिया बर्बादी और विनाश के कगार पर थी । ऐसी परिस्थिति में अल्लाह ने मोहम्मद सलअम को मानवता का क़ायद बनाकर इस संसार में भेजा । आपका व्यक्रित्व आगमन से ही सारी विशेषताओं यथा, नेकी, शराफ़त, सच्चाई और इन्सानियत से परिपूर्ण था । इसी कारण लोग आपको ‘अमीन’ अर्थात् सच्चा औंर अमानतदार कहकर पुकारा करते थे । अपनी बहुमुल्य वस्तुएँ आपके पास रखा करते थे, कभी किसी ने आपको झूठ बोलते नहीं सुना, आप वायदे के पक्के थे । जब आप ने लोगों की यह हालत देखी तो आपने इसका घोर विरोध किया, अत्याचार और उपद्रव को समाप्त किया । चूँकि अल्लाह ने आपके नबी बनाकर भेजा था तो भला आप इन कुरीतियों को कैसे सहन करते । 40 वर्ष की आयु में आपको नबूवत मिली और नबूवत मिलने के बाद क्रमशः 23 वर्षों तक हियात में रहे, इस 23 वर्षों में आपने संसार का काया पलट दिया । बिगाड़, फ़साद और बुरी प्रथा के विनाश के लिए आपने निरन्तर इस्लाम की दावत दी और लोगों को बताया कि हम सब एक ईश्वर के ब्तमंजनतम हैं अतः एक मात्र ईश्वर की ही इबादत करो इसके अलावा किसी और के आगे सर झुकाना उचित नहीं । आपने कहा सारे मानव समान हैं, सब ही आदम की संतान हैं और आदम मिट्टी से पैदा हुए थे । किसी अरबी को अजमी पर और किसी अजमी को अरबी पर इस प्रकार किसी गोरे को काले पर, और किसी काले को गोरे पर कोई श्रेष्टता एवं प्राथमिकता प्राप्त नहीं है, बल्कि तुम में जो व्यक्ति ईश्वर से जितना डरने वाला है इसका महत्व एवं सम्मान अपेक्षाकृत बड़ा है। आप स॰ ने दुनिया को मानवता, करूणा और न्याया की शिक्षा प्रदान की और सर्व प्रथम स्वयं इस पर अमल करके दुनिया को दिखाया। आप सर्वश्रेष्ठ कबीला क़ुरैश के आदरणीय एवं सम्मानित व्यक्त्वि होने के बावजूद हज़रत बेलाल को अपने पहलू में स्थान देते थे और इस प्रकार समानता का मामला करते थे । जिस तरह अपने परविार के किसी सदस्य के साथ व्यवहार करते । आपने समानता की ऐसी प्रथा चलाई कि मानव इतिहास ने फिर देखा कि आज़ाद और प्रतिष्ठित नस्ल के मुस्लिम बादशाहों के अलावा आज़ाद नस्ल मुसलमानों पर गुलाम नस्ल के बादशाहों ने शासन किया । आज दुनिया ने समानता और प्रजातंत्र का जो विशाल दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है जिसका पूरी दुनिया में ढ़िनडोरा पीटा जा रहा है वह हुज़ूर स॰ के समानता और अमली कार्य का एक छोटा नमूना भी नहीं पेश कर सकती । अमेरीका आज प्रजातंत्र का द्योतक बनता है लेकिन वह कालों को गोरों के समान नहीं व्यवहार करता । जीवन के अन्य क्षेत्रों में इनके साथ विभिन्नताएँ उत्पन्न की जाती हैं। हुज़ूर सल्म आपने 63 वर्षीय बहुमूल्य जीवन में पवित्र समाज का गठन किया । जिसमें केवल भलाई ही निहीत थी । आप सलम ने औरतों की इज़्ज़त, उनकी पवित्रता को सुनिश्चित किया । उन्हें पुरूष-समान समाजिक प्रतिष्ठा प्रदान किये । पिता की सम्पत्ती में बेटी का हिस्सा निर्धारित किया और लड़कियों के पालन-पोषण का सवाब लड़कों के पालन-पोषण की अपेक्षाकृत से अधिक बताया और लड़कियों को मारने पीटने, हत्या पर कड़ी निन्दा की और दण्डनीय अपराध घोषित किया । आपने एक स्वस्थ्य समाज का गठन किया। कोई भी कार्य करने का आदेश देने से पूर्व आप स्वतः इस पर कार्य करके दिखलाते इसके बाद सहाबा कराम को इस पर कार्य करने को फ़रमाते । आपके कारनामे, चरित्र ऐसे थे कि लोग आपको देखकर आपका गरवीदा हो जाते और आपके ‘दीन’ में प्रवेश कर जाते । मुश्रेकीन ने जहाँ इस्लाम पर बहुत सारे आरोप लगाए वहीं एक बड़ा आरोप यह भी है कि इस्लमा तलवार के जोर से फैला है। यह पूर्णतः निराधार है। इस्लमा हुज़ूर के क्रियाकलापों, चरित्र, न्याय और सुव्यवहार के प्रदर्शन से विस्तृत हुआ है। दुनिया ने पहली बार यह दृश्य देखा कि सहाबा स्वयं भूके रहते थे मगर क़ैदियों को खाना खिलाते थे । इस्लामी इतिहास में जिन युद्धों की चर्चा हुई है वह सब सुरक्षात्मक युद्ध हैं। जब मक्का के लोगों ने आपके और आपके साथियों और अनुयायिओं को अति प्रताड़ित किया और आकर यातनाओं की हद कर दी तो अने सुरक्षा का आदेश दिया । इतिहास साक्षी है कि सुलह हुदैबिया के परिणाम में इस्लाम तीब्रता से अग्रसर हुआ है और यह युद्ध भी सुरक्षात्मक थी । इसमें आपने निर्देश दिया कि औरतों और बच्चों को न मारा जाए । राम में आक्रमण न किया जाए, जो क़ैदी हों उनके साथ प्रताड़ना न किया जाए । कमाल की बात यह है कि आप की मुहब्बत और दया केवल मानव मात्र तक ही सीमित नहीं थी बल्कि आपने पशुओं, पक्षियों और वृक्षों का भी ध्यान रखा । आपने अख़लाक़, व्यवहार से लोगों के दिलों पर हुकूमत की । फिर इसी समाज के लोग जो आपके जानी दुश्मन थे, आप पर फ़रेफ़ता हो गए । आप पर जान न्योछावर करने लगे और क्यों न हो ? आप अपने साथियों, पड़ोसियों, अतिथियों और साधारण व्यक्तियों के साथ ऐसा व्यवहार करते और उनकी इतनी चिन्ता अपनी करते । अतः आपने एक बार फ़रमाया कि यदि कोई मुसलमान मर जाए तो इसका छोड़ा हुआ माल इसके उत्तराधिकारियों का है और जो वह क़र्ज (ऋण) छोड़ा है इसकी अदायगी मेरे ज़िमा है। भला यह कौन कर सकता है ? वास्तव में आप सारी मानवता के लिए रहमतुललिल्आलमीन थे । आपने ऐसा मानवीय समाज गठित की जिसका इतिहास उदाहरण प्रस्तुत नहीं कर सकता । रबिअव्वल का यही पवित्र महीना है जिसमें आपकी विलादत हुई और इसी महीने में आपने अपना काम पूरा करके वफात पाई । आपकी पैदाईश मानवता के लिए मिनारा-ए-नूर बनी और आपके आने से मानव समाज ळनपकंदबम की राह पर अग्रसर हुआ और इसका खोया हुआ सम्मान बहाल हुआ । आप (स॰अ॰) का तरीका आज भी हमारे लिए प्रेरणादायक है और आपके ही बदौलत हम दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कौम का हिस्सा हैं। यह प्रकृति का हम पर कृपा है कि आज के दिन हमें मिलादुन्नबी का जश्न माने के अतिरिक्त इनके बताए मार्ग पर चलने की भी प्रतिज्ञा करनी चाहिए । अषरफ अस्थानवी

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