आक़िब अंजुम आफ़ी विश्वास कीजिए कि जो क़ौम ग़ैर-ज़िम्मेदार बन जाती है। बहुत हद तक सोचने और समझने की क्षमता खो देती है। समकालीन मुद्दों की मूल बातों पर विचार करने और कार्रवाई करने के बजाए मित्र तर्क दे रहे हैं कि कॉलेज जाने से मुस्लिम लड़कियाँ धर्मत्याग कर देती हैं। क्या मानसिक पूर्णता और क्या श्रेष्ठ मस्तिष्क। हम बचपन से आज तक कॉलेज में पढ़े हैं, हमारे दोस्त भी इसी माहौल में रहे हैं। अनगिनत लड़कियों ने हमारे साथ पढ़ाई की है लेकिन अल्लाह के करम से किसी ने कभी ऐसा नहीं किया। पर्यावरण के अपने प्रभाव होते हैं। व्यवस्था का अपना प्रभाव होता है। मित्रों का अपना अलग प्रभाव होता है। परिवार वाले भी कुछ छाप छोड़ते हैं और इसी प्रकार एक इंसान बड़ा होता है। यह एक लंबी कड़ी है। अल्लामा गीलानी फ़रमाते हैं: जीहों के तमव्वुज में नादान धरा क्या है सुलझी नहीं जो गुत्थी तो उसमें फंसा क्या है मैंने शिक्षा के बारे में बहुत कुछ लिखा है। ज्ञान एक ऐसी एकता है जो न तो पूर्व की है और न ही पश्चिम की। यह ख़ुदा की वह देन है जिसको जितना हासिल करो उतना कम है। मौलाना अली मियां नदवी रहमतुल्लाहि अलैह के अनुसार ज्ञान एक सत्य है जो ख़ुदा की देन है जो किसी भी समुदाय या देश का नहीं होना चाहिए। उनका मानना है कि ज्ञान एक इकाई है जिसे विभाजित नहीं किया जा सकता। इसे प्राचीन और आधुनिक, पूर्वी और पश्चिमी, सैद्धांतिक और व्यावहारिक में विभाजित करना सही नहीं है और अल्लामा इक़बाल के अनुसार: ज़माना एक, हयात एक, कायनात भी एक दलील कम नज़री, क़िस्सा-ए-जदीद ओ क़दीम वास्तव में हम सोचते कम हैं और भड़कते ज़्यादा हैं। अगर हम किसी चीज़ के बारे में सोचते हैं और फिर उसके बारे में विचार करते हैं तो हमें अपनी कई समस्याओं का कारण और समाधान मिल जाएगा। यह कोई नई बात नहीं है। कई साल पहले हमारे महान शैखुल हिंद रह., शिबली रह., मुनाज़िर अहसान गीलानी रह. ने इस समाधान का प्रस्ताव किया था जिसका अभी भी पालन किया जा रहा है और अल्लामा गीलानी द्वारा व्यक्त किए गए उसी दृष्टिकोण को अपनाया जा रहा है अर्थात् एक-दूसरे को नफ़रत और दुश्मनी से देखना। मैं मदरसे वाला मुल्ला और तुम कॉलेज वाले जाहिल। हो गया काम। अल्लाह अल्लाह ख़ैर सल्ला। अल्लामा गीलानी फ़रमाते हैं: “मेरी राय में, इस तबाही का एकमात्र समाधान कोई नया समाधान नहीं बल्कि शिक्षा प्रणाली की एकता का पुराना सिद्धांत ही हो सकता है। हमें कुछ सोचने की आवश्यकता नहीं है बल्कि बुज़ुर्गों के सैंकड़ों बल्कि हज़ारों साल के अपने अनुभव के बाद शिक्षा का जो मार्ग उन्होंने प्रशस्त किया यदि उसी पर चिन्तन किया जाए तो मैं समझता हूँ कि वर्तमन समस्याओं के समाधान का मार्ग उसी से उत्पन्न हो सकता था।” मौलाना अली मियां नदवी को भी उसी दिशा में इशारा करते देखा जाता है। “मेरे विचार में युवाओं को इस घातक दुविधा से बचाने का पहला क़दम शिक्षा प्रणाली की दुविधा को समाप्त करना होना चाहिए। यदि युवाओं की चिंता और अन्य भ्रमों को दूर किया जाना है तो सबसे पहले शिक्षा और पाठ्यक्रम के बीच सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है।” और क्यों कर ये कठिनाइयाँ और पीड़ाए दूर न हों, जब ज्ञान जोकि ख़ुदा की देन है; उसे ख़ुदा के प्यारे नाम के साथ जोड़ा जाए। पढ़ो बिस्मिल्लाह के साथ। यह बस एक मार्ग है। और फिर क्या, इस पर अमल करो। माता-पिता की ज़िम्मेदारियाँ, शिक्षक की ज़िम्मेदारियाँ, बस, बस और कुछ नहीं। मामला सुलझ गया। नोट: निबंधकार जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र और जीवनी शोधकर्ता है

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